भगवान शिव के 10 सबसे रहस्यमयी और चमत्कारिक मंदिर जिनके रहस्य से वैज्ञानिक भी हैरान | 10 Most Mysterious Shiva Temples in India and their Stories

Most Mysterious Shiva Temples in India


Kaal Bhairav Temple, Varanasi 

वाराणसी में भगवान शिव के अवतार Kaal Bhairav जी का मंदिर मौजूद है जो वाराणसी के सबसे पुराने शिव मंदिरों में से एक है। काल का मतलब मौत होता है और कहा जाता है की मौत भी काल भैरव से डरती है। काल भैरव के इस मंदिर की खास और चौकाने वाली बात यह है की इस मंदिर में भगवान को भोग के तौर पर मदिरा यानि शराब चढ़ाई जाती है और भक्तों को भी प्रसाद के तौर पर शराब या शराब की खाली बोतल दी जाती है। इस मंदिर में हर दिन बहुत से लोग दर्शन करने आते है और माना जाता है की मंदिर में शराब चढ़ाने से लोगों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।

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Stambheshwar Mahadev Temple 

गुजरात की राजधानी से 150 किलोमीटर दूर Kavi Kamboi नाम की जगह पर Stambheshwar Mahadev नाम का प्राचीन शिव मंदिर मौजूद है। भगवान शिव का यह प्राचीन मंदिर अरब सागर के कैम्बे तट पर मौजूद है और इस मंदिर की खास बात यह है की समुन्द्र किनारे मौजूद होने के कारण ये मंदिर दिन में 2 बार पूरी तरह समुन्द्र में गायब हो जाता है। दरअसल यह घटना चमत्कार नहीं बल्कि प्राकृतिक है क्यूंकि ज़ब समुन्द्र में ज्वार भाटा आता है तो समुद्र में पानी का स्तर बढ़ जाता है और मंदिर पूरी तरह समुन्द्र में डूब जाता है। यहाँ दिन में दो बार सुबह और शाम के समय ज्वार भाटा आता है और मंदिर पानी में गायब हो जाता है, भक्त भगवान शिवजी के दर्शन के लिए लम्बी कतारों में खडे होकर पानी के हटने का इंतजार करते है और मंदिर में जाते समय सभी भक्तों को ज्वार भाटा आने का समय भी बताया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि शिवजी के बेटे कार्तिकेय जी को ज़ब ताड़कासुर राक्षस का वध करने के बाद पता चला कि वह भगवान शिव का परम् भक्त है तो कार्तिकेय जी को बेहद दुख हुआ और इसका प्रायश्चित करने के लिए भगवान विष्णु जी के कहने पर कार्तिकेय ने वध किये गए स्थान पर शिवलिंग स्थापित किया और उसी जगह पर आज ये मंदिर बनाया गया है।

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Bijli Mahadev Temple, Kullu

बिजली महादेव मंदिर मनाली से लगभग 60 किलोमीटर और कुल्लू से 30 किलोमीटर दूर पहाड़ की चोटी पर समुद्र तलसे 2460 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। ऊंचाई पर मौजूद होने की वजह से यह मंदिर बहुत ही खूबसूरत लगता है जहां से कुल्लू, मणीकर्ण, पार्वती और भुंतर घाटी दिखाई देती है लेकिन खूबसूरत होने की साथ ही यह मंदिर रहस्यमयी और चमत्कारिक भी है क्यूंकि इस मंदिर पर हर 12 साल बाद अकाशीय बिजली गिरती है और इसीलिए वजह से इस मंदिर को बिजली महादेव नाम दिया गया है। बिजली मंदिर की शिवलिंग की ऊपर गिरती है जिससे शिवलिंग कई हिस्सों में टूट कर बिखर जाता है और मंदिर का पुजारी सभी टुकड़ों को इकट्ठा करके उन्हें मक्खन से जोड़कर दोबारा ठोस रूप देता है। मक्खन से बने होने की कारण इसे मक्खन महादेव भी कहा जाता है। इस मंदिर पर होने वाले व्रजपात की पौराणिक कहानी स्थानीय लोग बताते है कि प्राचीन काल में इस जगह पर कुलांत नाम का दैत्य रहा करता था और एक दिन उसने एक विशाल अजगर का रूप ले लिया और ब्यास नदी में कुंडली मार कर बैठ गया ताकि वह पूरी घाटी को जल में डुबो कर खत्म कर सके। इसके बाद भगवान शिव भक्तों की रक्षा के लिए आये और अपने त्रिशूल से अजगर का वध किया और लोगों कि जान बचायी, माना जाता है कि रोहतांग से मंडी तक फैले पहाड़ कुलांत अजगर का ही शरीर था जो उसकी मौत के बाद पहाड़ में बदल गए। कुलांत की मौत के बाद भी ज़ब स्थानीय लोगों का डर नहीं गया तो शिवजी कुलांत के माथे पर यानि पहाड़ की छोटी पर ही बस गए और बारिश के देव इंद्र को आदेश दिया कि कुल्लू वासियों पर आने वाले सभी संकट को बिजली के रूप पर उनके ऊपर गिराना और माना जाता है तभी से कुल्लू घाटी के सभी संकट भगवान शिव अपने ऊपर सहते है।

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Titilagarh Shiv Mandir

ओड़िशा में तितलागढ़ के Kumhada पहाड़ी में भगवान शिव का रहस्यमयी मंदिर मौजूद है और इस मंदिर की खास बात यह है कि बाहर चाहे जितनी भी गर्मी हो यह मंदिर अंदर से हमेशा ठंडा ही रहता है। कहा जाता है बाहर तापमान जितना ज्यादा बढ़ता है मंदिर के अंदर का तापमान उतना ही कम होता जाता है। तितलागढ़ पहाड़ियों में बसे होने के कारण ओड़िशा की सबसे गर्म जगह है जहाँ का तापमान 50°C तक चला जाता है लेकिन मंदिर के अंदर का तापमान 10°C तक ही रहता है और ज्यादा देर मंदिर के अंदर बैठने से ठंड की वजह से कंबल ओढ़ना पड़ता है। मंदिर के अंदर इतनी ठंड क्यों पड़ती है इसका साफ पता वैज्ञानिक भी नहीं लगा पाए है लेकिन अनुमान लगाया जाता है कि मंदिर में मौजूद भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्तियों से ठंडी हवा निकलती है जिससे पूरा मंदिर ठंडा रहता है। 

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Airavatesvara Temple, Tamilnadu

Airavatesvara Temple तमिलनाडु के Kumbakonam में मौजूद एक हिन्दू मंदिर है जिसे 12वीं सदी में Chola के राजाओं ने बनाया था और यह मंदिर भगवान शिव जी को समर्पित है। इस मंदिर की खास बात इसकी सीढियाँ है जिन्हें इस तरीके से बनाया गया है कि इनपर कदम रखने पर इनसे मधुर संगीत की अलग अलग ध्वनि सुनाई देती है। ये ध्वनि क्यों आती है और इसके पीछे का कारण क्या है इसका साफ पता आज तक नहीं चल पाया है। साल 2004 में इस मंदिर को UNESCO के World Heritage Site में भी जगह दी गयी थी।

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Kailasa Temple, Ellora

महाराष्ट्र की Ellora की गुफाओं में मौजूद भगवान शिव का Kailasa Temple एक ही पत्थर को काट कर बनाया गया हिन्दुओं की सबसे बड़ा मंदिर है। Kailasa Temple की खास बात इस मंदिर की बनावट है जिसे सिर्फ एक ही पत्थर को तराश कर बनाया गया है और एक ही पत्थर पर बनाई गयी ये दुनिया की सबसे बड़ी आकृति है। पुरातत्वविद के अनुसार इस मंदिर को 8वीं   सदी में बनाया गया होगा और इसे बनाने के लिए यहाँ से 2,000 टन पत्थर निकाले गए होंगे। इस मंदिर की सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि जिस तरीके से इस मंदिर को बनाया गया है ऐसा आज के समय में इतनी टेक्नोलॉजी और इंजीनियरिंग के होने के बाद भी नामुमकिन सा लगता है इसलिए हैरानी की बात है कि हजारों साल पहले के लोगों ने बिना किसी टेक्नोलॉजी और ज्यादा ज्ञान के इस मंदिर को इतनी सुंदरता से कैसे बना लिया होगा। पुरातत्वविद का मानना है कि आज की तकनीक का इस्तेमाल करते हुए 2,000 टन पत्थर को निकाल कर इस तरह के मंदिर को बनाने में 100 साल तक लग सकते है लेकिन यह मंदिर उस समय सिर्फ 18 सालों में बन कर तैयार हुआ था। भगवान शिव के इस मंदिर को इसकी अनोखी बनावट के लिए UNESCO World Heritage Site में शामिल किया गया है।

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Achaleshvar Mahadev Temple, Rajasthan

राजस्थान में धौलपुर के जंगलो में भगवान शिव का ऐसा चमत्कारी मंदिर मौजूद है जहाँ पर शिवलिंग दिन में 3 बार रंग बदलता है। इस मंदिर का नाम अचलेश्वर महादेव है और इसका इतिहास किसी को नहीं पता कि इस मंदिर को कब और किसने बनवाया था। मंदिर में मौजूद शिवलिंग का रंग सुबह के समय लाल दोपहर के समय केसरिया और शाम के समय सांवला हो जाता है लेकिन शिवलिंग का रंग क्यों बदलता है इसका पता नहीं चल पाया है। इस शिवलिंग की एक और खास बात यह है कि इस शिवलिंग की गहराई कितनी है इसका पता आज तक नहीं चल पाया है, एक बार शिवलिंग के आखिरी छौर तक पहुंचने के लिए खुदाई करवाई गयी थी लेकिन जमीन के बहुत नीचे तक खोदने के बाद भी ज़ब शिवलिंग का आखिरी छौर नहीं मिल पाया तो खुदाई को बंद करवा दिया गया।

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Nishkalank Mahadev, Gujrat

Nishkalank Mahadev भावनगर, गुजरात के Koliyak तट पर मौजूद भगवान शिवजी का मंदिर है। इस मंदिर में 5 शिवलिंग मौजूद है जिनके सामने नंदी जी की मूर्ति भी मौजूद है। इन शिवलिंगों को स्वयंभु माना जाता है यानि कि ये शिवलिंग खुद ही प्रकट हुए थे। यह मंदिर समुद्री तट से 1.5 किलोमीटर दूर अरब महासागर में मौजूद है और भारी ज्वार के दौरान पूरा मंदिर समुन्द्र में डूब जाता है और मंदिर की ध्वजा ही दिखाई देती है। भक्त ज्वार कम होने के बाद मंदिर के दर्शन करने जाते है। यह एक प्राचीन मंदिर है और इसे कुछ इस तरीके से बनाया गया है कि समुन्द्र का तेज बहाव भी इसका कुछ नहीं बिगाड़ती। इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुडा है, माना जाता है कि कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद अपने कौरव भाइयों कि हत्या करने के बाद पांडव इस पाप का प्रायश्चित करना चाहते थे जिसके लिए उन्होंने श्री कृष्ण से मदद ली और कृष्णा जी ने पांडवो को एक काला ध्वज और एक काली गाय दी और कहा कि तुम्हें इस काले ध्वज और काले गाय का पीछा तब तक करना है ज़ब तक दोनों का रंग सफ़ेद नहीं हो जाता और जहाँ पर भी इनका रंग सफ़ेद होता है वहाँ पर पांडवो को भगवान शिव की तपस्या करनी है क्यूंकि भगवान शिव ही उन्हें इस पाप से मुक्त करा सकते है। इसके बाद पांडव भगवान श्री कृष्ण की बात मान कर काला ध्वज हाथ में लेकर काली गाय का अनुसरण करने लगे और कई सालों तक पीछा करने के बाद Koliyak तट पहुंच पर गाय और ध्वजा दोनों का रंग सफ़ेद हुआ और वहीं पर पांडव शिवजी की तपस्या करने लगे। पांडवो की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने पांचो पांडवो को शिवलिंग के रूप में दर्शन दिया और पांचो को कौरवों की हत्या के पाप से मुक्त किया। वही 5 शिवलिंग आज भी उसी जगह पर मौजूद है और इस जगह पर भगवान शिव ने पांडवो को कौरवों की हत्या के पाप के कलंक से मुक्त कराया था इसीलिए इसे निष्कलंक महादेव नाम दिया गया।

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Kedarnath Temple, Uttrakhand

भगवान शिव के श्री केदारनाथ मंदिर को तो लगभग सभी भारतीय जानते होंगे और इस मंदिर का दर्शन करना बहुत से लोगों का सपना भी होगा। केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में मंदकिनी नदी के पास मौजूद है। केदारनाथ मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगो में से सबसे प्रसिद्ध है और प्रसिद्ध होने के साथ ही यह मंदिर अपने में बहुत से रहस्ययों को भी समाये हुए है। माना जाता है की केदारनाथ मंदिर को पांडवो द्वारा बनाया गया था और कहानी है कि महाभारत के युद्ध में अपने कौरव भाइयों की हत्या के बाद भगवान शिव पांडवो से रुष्ट हो गए थे जिसके बाद पांडव शिवजी को प्रसन्न करने के लिए उन्हें ढूंढ़ने काशी पहुंच गए लेकिन शिवजी वहाँ से छुपकर केदारनाथ पहुंच गए ज़ब पांडव शिवजी का पीछा करते हुए केदारनाथ भी पहुंच गए तो भगवान शिव ने भैंस का रूप लेकर भैंसों के झुण्ड में छिप गए पर भीम ने उन्हें भैंस के रूप में भी पहचान लिया तो शिवजी जमीन के नीचे समाने लगे लेकिन भीम ने उनकी पूँछ पकड़ ली जिससे भैंस का मुख नेपाल में निकला और शिवलिंग बन गया और वहाँ पर श्री पशुपतिनाथ जी का मंदिर बनवाया गया और भैंस के पीठ का कूबड़ वाला हिस्सा केदारनाथ में ही रह गया जो शिवलिंग बन गया अतः इन दोनों ही स्थानों के शिवलिंग स्वयंभु है। इसके बाद पांडवो ने इस शिवलिंग की पूजा की और यहाँ मंदिर का निर्माण किया। मंदिर के निर्माण में इंटरलोकिंग तकनीक के साथ विशालकाय पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है और प्राचीन समय में इस तरह से मंदिर को बनाना आज भी लोगों को हैरान करती है। मंदिर की बनावट कुछ ऐसी थी की 13वीं से 17वीं शताब्दी तक आये छोटे से हिमयुग में यह मंदिर 400 सालों तक बर्फ में दबा रहा लेकिन बर्फ हटने के बाद भी मंदिर पूरी तरह से सुरक्षित था। पहाड़ी में मौजूद, मुश्किल रास्ता और ज्यादा बर्फबारी होने के कारण केदारनाथ मंदिर को दीपावली के दूसरे दिन से 6 महीनों के लिए बंद किया जाता है। लेकिन हैरानी की बात है की 6 महीनों के बाद ज़ब मंदिर के कपाट खुलते है तो मंदिर के अंदर का दीपक तब भी निरंतर जल रहा होता है और मंदिर की सफाई भी वैसी ही होती है जैसे मंदिर को बंद करते समय थी। केदारनाथ मंदिर का चमत्कार हाल ही में 2003 में केदारनाथ में आये बाढ़ में भी दिखा था, यह बाढ़ इतना भयंकर था की इसमें 10,000 के करीब लोगों की मौत हो गयी थी और आसपास की सभी ईमारतें बह गयी लेकिन भगवान शिव का चमत्कार ही था कि एक विशालकाय पत्थर पानी में बहकर आया और ठीक मंदिर के पीछे आकर रुक गया जिससे बाढ़ का पानी दो हिस्सों में बंट गया और मंदिर पूरी तरह सुरक्षित रहा। केदारनाथ मंदिर के ये सभी रहस्य और चमत्कार ही इसे सभी ज्योतिर्लिंगो में सबसे सर्वश्रेष्ठ बनाते हैं।

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Asirgarh Shiv Temple

मध्यप्रदेश के Burhanpur शहर में Asirgarh नाम का किला मौजूद है जिसे माना जाता है कि 15वीं शताब्दी में Asa Ahir नाम के राजा ने बनाया था। इस किले में एक प्राचीन शिव मंदिर मौजूद है जिसे गुप्तेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि इस मंदिर में हर रात महाभारत के अमर पात्र अश्वतथामा भगवान शिव की पूजा करने आते है। अश्वतथामा महाभारत में कौरव के योद्धा थे और युद्ध में हुए उनके पिता द्रोणाचार्य की मौत का बदला लेने के लिए युद्ध खत्म होने के बाद अश्वतथामा ने रात के समय पांडव पुत्रों की हत्या कर दी थी जिसके बाद भगवान श्री कृष्णा ने अश्वतथामा को श्राप दिया था कि कलयुग खत्म होने तक अश्वतथामा की मृत्यु नहीं होगी और उन्हें तब तक हर तरह की बीमारी और पीड़ा को सहना पड़ेगा और उनके ज़ख्म और दर्द भी कभी नहीं भरेंगे। अश्वतथामा के माथे पर बचपन से एक दिव्य मणि भी मौजूद थी जिसे श्री कृष्ण ने निकाल दिया था। कहा जाता है श्राप के बाद अश्वतथामा जगह जगह भटक रहे है और भगवान शिव कि पूजा करने के लिए वह Asirgarh किले में मौजूद इस शिव मंदिर में हर रात आते है। आश्चर्य कि बात है कि रात के समय मंदिर का दरवाजा बंद कर दिया जाता है लेकिन ज़ब सुबह जैसे ही दरवाजे को खोला जाता है तो मंदिर के शिवलिंग में हर रोज ताज़ा फूल और चंदन चढ़ाये हुए मिलते है। किले के आसपास के गांव के कुछ लोगों ने भी अश्वतथामा को देखे जाने की बात मानी है और उनका कहना है कि कई बार उन्हें 10-12 फुट का इंसान देखने को मिला है जिसके माथे और शरीर में बहुत से ज़ख्म है और वह ज़ख्म को ठीक करने के लिए लोगों से तेल और हल्दी मांगता है। शिवलिंग में रोजाना नए फूल के चढ़ावे के रहस्य को सुलझाने के लिए बहुत से न्यूज़ चैनल के रिपोर्ट्स ने भी किले में रुककर रहस्य को सुलझाने की कोशिश की लेकिन उन्हें अश्वतथामा तो कभी नहीं दिखा लेकिन शिवलिंग में सुबह नया फूल और चंदन देखने को जरूर मिलता था।

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