हचिको, एक कुते की ईमानदारी की रुला देने वाली कहानी । Heart touching Story of Hachiko

Hachiko Dog Story in Hindi

हचिको एक जापानीज अकीटा (Akita) प्रजाति का कुत्ता था जिसका जन्म 10 नवंबर 1924 में जापान के ऑडिट नाम की जगह में एक फार्महाउस के पास हुआ था।
हचिको, एक कुते की ईमानदारी की रुला देने वाली कहानी । Loyalty Story of Hachiko

1924 मे हिदेसबुरो यूएनओ (Hidesaburo Ueno) जो की टोक्यो इम्पीरियल यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर का काम करते थे उन्होंने हचिको को पालने के लिए अपने घर लाया। दोनों में काफी गहरी दोस्ती हो गयी थी। यूएनओ हर रोज़ टोक्यो के शिबुया रेल स्टेशन से अपनी यूनिवर्सिटी जाया करते थे और हचिको भी हर रोज़ उन्हें छोड़ने रेलवे स्टेशन आया करता था और शाम तक अपने मालिक के आने का इंतज़ार करता था और दोनों साथ मे घर जाते थे। पर एक दिन यूएनओ की यूनिवर्सिटी में मस्तिष्क में रक्तस्राव होने की वजह से उनकी मौत हो गयी और वो कभी वापिस नही आ सकते थे, पर इन सब से बेखबर हचिको  रेलवे स्टेशन में ही अपने मालिक का इंतजार करना रहा और हचिको का यह इंतज़ार 9 साल 9 महीने ओर 15 दिनों तक चलता रहा जब तक 8 मार्च, 1935 में हचिको की मौत नहीँ हो गयी। हचिको रोज ट्रेन आने के समय मे रेलवे स्टेशन में अपने मालिक को देखने जाता था।

यूएनओ की मौत के बाद भी हचिको रोज़ स्टेशन पर अपने मालिक के इंतजार में इसी उम्मीद के साथ आता था कि अपने मालिक के साथ घर जाएगा और यह सिलसिला रोज़ाना चलता रहा। फिर एक दिन यूएनओ की यूनिवर्सिटी के ही छात्र हिरोकीची साइटो (Hirokichi Saito) जिसने अकीटा प्रजाति के कुत्तों के बारे में कुछ रिसर्च की थी उसकी नज़र रेलवे स्टेशन पर बैठे हचिको पर पड़ती है और वह हचिको का पीछा करता है ओर यूएनओ के माली (कुज़बोरो कोबायाशी) Kuzaboro Kobayashi के घर पहुंचता है। वहीं से हिरोकीची, हचिको के बारे में सब पता लगाता है। इसके बाद हिरोकीची अकीटा प्रजाति पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाता है जिसमे वह बताता है कि जापान में हचिको को मिलाकर सिर्फ 30 ही अकीटा प्रजाति के कुते बचे हैं।

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कुछ ही सालों में हिरोकीची ने हचिको के बारे में बहुत से लेख प्रकाशित किये। लेकिन उनके 1932 में प्रकाशित हुए लेख असाही शिम्बुन (Asahi Shimbun) की वजह से हचिको को पूरे जापान में लोकप्रियता मिलने लगी। हचिको की अपने मालिक के प्रति वफादारी व ईमानदारी की पूरे जापान में प्रशंसा होने लगी लोग स्कूलों में भी बच्चों को हचिको की ईमानदारी का उदाहरण देने लगे। हचिको जापान में ईमानदारी का एक प्रतीक बन गया था। इसके बाद बहुत से लोग रेलवे स्टेशन पर हचिको के लिए खाना लेकर जाने लगे ताकि वह भूखा न रहे। इसके बाद जापान में अकीटा प्रजाति के कुत्तों को भी बचाने की मुहिम चल पड़ी।

8 मार्च, 1935 में 11 साल की उम्र में हचिको की मौत हो गयी। 2011 में एक शोध के बाद पता चला कि हचिको की मौत कैंसर और फ़ाइलेरिया इंफेक्शन की वजह से हुई थी। हचिको के अंतिम संस्कार के बाद उनके राख को उसके मालिक यूएनओ की कब्र के पास ही दबा दिया गया। हचिको के बालों को याद के तौर पर जापान के साइंस म्यूजियम में सम्भाल के रखा गया।

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हचिको के सम्मान 1932 में काँस की मूर्ति बनाई गई थी। दुसरी मूर्ति अगस्त 1948 बनाई गई जहाँ पर हचिको अपने मालिक का इंतजार किया करता था। शिबुया रेलवे स्टेशन में 5 प्रवेश द्वार है जिनमें से एक का नाम 'Hachiko Guchi' रखा गया जिसका नाम है हचिको प्रवेश। 2004 में जापान के अकीटा डॉग म्यूजियम के बाहर भी हचिको की मूर्ति बनवायी गयी। 2009 में हचिको के ऊपर एक अमेरिकी फ़िल्म Hachi: A Dog's Tale भी बनी थी जिससे लोग हचिको के बारे में ओर जानने लगे थे।

हर साल 8 मार्च को टोक्यो के शिबुया रेलवे स्टेशन पर हचिको की ईमानदारी को याद करते हुए एक समारोह रखा जाता है जिसमें हजारों कुत्तों को प्यार करने वाले लोग शामिल होते है।

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